Saturday, 10 December 2016

www.nileshsardar.blogspot.com

संविधान दिले आम्हास
म्हणूनच जग पाहतो आहे
भीमा तुझ्या पुण्याईनेच
स्वाभिमानाने जगतो आहे

         #जयभिम#

Thursday, 27 October 2016

Dr.Babasaheb Ambedkar

हल्लीच्या मोर्च्यातली बौद्ध 👬 लोकसंख्या पाहून एक विचार मनात आला ....हीच एकी.... हीच सामाजिक भावना .... निवडणूकीत दीसली तर .... नक्कीच .... आपला👉🏻 सरपंच, नगरसेवक, आमदार, खासदार, ....एव्हढंच काय तर👆🏻 भारताचा प्रधान मंत्रीही निळा फेटा घालून भारतीय संविधानाचे ✊🏻रक्षण करण्याची शपथ घेईल ....आणि एका नविण👉🏻 सरकार ची स्थापना होईल ज्याचे नाव असेन👆🏻फक्त आणि फक्त 👉🏻भिम सरकार...🇪🇺🇪🇺 निळे वादळ 🇪🇺🇪🇺🙏🏻जय भिम जय भारत🙏🏻                        


Wednesday, 5 October 2016

The Great Samrat Ashok

विजय दशमी पर आप सभी को बधाई :- महान सम्राट अशोक की शिक्षा अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना।
सम्राट अशोक को बौद्ध होने और बौध धम्म के प्रचार-प्रचार का चर्चा प्रायः सभी लोग करते हैं लेकिन उन्होंने जनशिक्षा के लिए जितना महत्वपूर्ण काम किया, उतना विश्व के किसी राजा-महाराजा ने नहीं किया। उन्होंने कई शिक्षण संस्थान की स्थापना की ।
 304 ई पू:अशोक का जन्म
 286 ई पू: अशोक को अवंति का उपराजा बनाया गया । विदिशा की सेठ कन्या देवी के साथ उनका विवाह हुआ। यही देवी बाद में महादेवी नाम से ख्यात हुई जिससे महेंद्र नामक पुत्र का जन्म 284 ई. पूर्व हुआ।
 284 ई पू: अशोक ने उज्जैन अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना की।
 282 ई पू:राजकुमार महेंद्र व राजकुमारी संघमित्रा के जन्म की खुशी में उज्जैन विश्वविद्यालय और सांची अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना की.।
 280 ई पू:तक्षशिला में भारी जनाक्रोश वहां के उपराजा सुशीम के कारण उभरा। जनाक्रोश शान्त नहीं हुआ तब राजा बिन्दुसार ने अशोक को तुरंत तक्षशिला जाकर उभरे भारी जनाकोश को शांत करने का आदेश दिया। अशोक उज्जैन से पिता राजा बिन्दूसार से राजगृह में मिले और आज्ञा लेकर तक्षशीला गए। तक्षशिला के वासियों को राजकुमार के राज नेतृत्व की जैसे ही खबर मिली, जनता उल्लास से भर गयी। तक्षशिला जाते ही राजकुमार अशोक क्षेत्र का अनवरत दौरा कर जनता से मिले और उनकी शिकायतें सुनकर सुशासन, सुव्यवस्था का भरोसा दिया।
 279 ई पू:अशोक गंधार में अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना की.
 270 ई पू: अशोक राज्याभिषेक होने की अतिशय प्रसत्रता में सम्राट ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की।
दूसरी शताब्दी में पैदा हुए नागार्जुन इस विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे है। ब्राह्मण इतिहासकार इस विश्विद्यालय को गुप्तकाल से जोड़ते है जो कि गलत है।
 268 ई पू:अशोक उदन्तपुर विश्वविद्यालय की स्थापना।
 266 ई पू:सारनाथ अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना।
 265 ई पू:मथुरा अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना।
 264 ई पू:दन्तपूर अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना(राजकुमार महेंद्र और राजकुमारी संघमित्रा के बौद्ध धम्म के प्रसार के निर्मित भिक्षु बनने पर अतिशय उल्लास में दंतपुर (कलिंग देश की राजधानी) में अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना की गई थी।
 263 ई पू:सारनाथ अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना ।
 260 ई पू:नागरा अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना(नागरा, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित हैं आज के गोदिंया जिला से 8 किमी की दूरी पर स्थित हैं) और पवनी ( यह भंडारा जिला, महाराष्ट्र में स्थित हैं) ।
 258 ई पू:श्रीनगर अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना(श्रीनगर का प्राचीन नाम प्रवरपूर था प्रवरपूर का ही अशोक कालीन परिवर्तित नाम श्रीनगर रखा गया. यह स्थान अदितीय धन -धान्य से भरपूर था. इस कारण इस महारमणीक स्थान का नाम सम्राट अशोक ने श्रीनगर रखा. कश्मीर, जम्मू का पूरा पूरा इलाका बौद्धमय था. कश्मीर को सम्राट कनिष्क ने बसाया और बढाया था. कनिष्क बहुत प्रसिद्ध बौद्ध धर्मी सम्राट थे. सम्राट कनिष्क के नाम पर इस नगर का नाम कनिष्कपूर था. यही कनिष्कपूर आज का कश्मीर नगर हैं. कश्मीर राज्य हैं)
 257 ई पू:गिरनार अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना (गुजरात प्रान्त के जूनागढ़ के पास हैं. गिरनार में जो प्रसिद्ध शिलालेख मिला हैं, वह गिरनार के बौद्ध अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) में ही लगाया गया था. गिरनार का शिलालेख बहुत ही प्रसिद्ध शिलालेख हैं)।
 256 ई पू:एरागुंडी अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना(आंध्रप्रदेश की कुर्नल जिला में हैं.256 ई पू मे सम्राट अशोक ने बहुत विशाल अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना की .यहां भी जनशिक्षा के लिए उन्होंने विशाल शिलालेख यानी पत्थर की किताब को गडवाया)
 255 ई पू :गुन्टू अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना(पालकी गुण्टू मैसूर के पास कोपबल तहसील में हैं. मैसूर के पास कई सौ गावों में एक साथ सम्राट अशोक ने अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना करायीं .सभी विद्यापीठों में पत्थर की किताबों का पुस्तकालय बना दिया. इन्हीं किताबों को राज कर्मचारी छागड पर लादकर बांव ले जाकर लोगों को पत्थर की किताबें पढाकर उस पर अमल करने का निवेदन किया करते थे)
 250 ई पू: बोधगया महाबोधि विहार की स्थापना. अशोक ने तीसरी बौद्ध संगीती की याद में बोधगया महाबोधि विहार की स्थापना की .यह आज प्राचीनतम बुद्ध मंदिर के नाम से भारत में मशहूर हैं पुरानी इमारत हैं.।
 245 ई पू:जगदलपुर विश्वविद्यालय की स्थापना .आज यह स्थान बंगलादेश में हैं.
 243 ई पू: कौशाम्बी अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) की स्थापना .अशोक के समय कोशाम्बी बहुत ही प्रसिद्ध नगर था. बौद्ध संस्कृति के लिए यह स्थान ख्याति प्राप्त था.इलाहाबाद से 30 किमी पशिम कोशाम्बी नगर स्थित हैं.
 240 ई पू: विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना .विक्रमशिला बिहार राज्य की भागलपुर जिला में अवस्थित हैं.अशोक काल में विक्रमशिला बहुत ही प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र था. इस प्रकार अशोक कालीन शिक्षा विस्तार के अध्ययन से यह पता चलता हैं कि भारत के कोने-कोने में सम्राट अशोक ने विद्यापीठ की स्थापना की. जहां -जहां विद्यापीठ बनें वहां निश्चित रूप से बौद्ध विहार बनाया गया. विदानों की सर्वसम्मत राय है कि अशोक ने अपने समय करीब 84000 स्तूप ,अध्ययन केंद्र (बौद्ध विहार) बनवाये थे। 
जय धम्म अशोक।

Monday, 26 September 2016

AARAKSHAN

दुसर्याच आरक्षण डोळ्यात  खुपतय ना मग वाचा

ग्रामपंचायती, पंचायत समित्या, झेडप्या यांच्या ताब्यात. आमदारकी, खासदारकी, मंत्रीपदं, मुख्यमंत्रीपदं यांच्या ताब्यात. सुतगिरण्या, साखरकारखाने, दुधडेर्या यांच्या ताब्यात. सोसायट्या, सहकारी बॅंका, शिक्षण संस्था यांच्या ताब्यात. तरी यांच्यावर अन्याय झाला म्हणे! कुणी केला हा अन्याय? गावकुसाबाहेर राहणार्या दलितांनी? जंगलात राहणार्या आदिवासींनी? बिर्हाड पाठीवर घेवून गावोगावी भटकणार्या भटक्यांनी? दिवसभर गाड्यावर काही वाही विकून पोट भरणार्या मुसलमानांनी? सांगा  मराठ्यांनो तुमच्यापैकी किती जन गावा बाहेर पालं ठोकून राहतात? किती जनांना बूड टेकायला जमीन नाही? किती जन फुटपाथावर झोपतात? किती जन झोपडपट्टीत  राहतात? किती जन नगर पालिकेच्या गटारी उपसतात? रेल्वे रुळावरची घान साफ करतात? किती बायका रस्ते झाडतात? किती जन सुलभ शौचालयं चालवतात? किती जन डोक्यावरून मैला वाहतात? यांचं आरक्षण तुमच्या डोळ्यात खुपते ना? मग घ्या आरक्षण आणि करा ना ही कामं ! आम्हीही आरक्षण सोडायला तयार आहोत. फक्त जमीनीचं आणि संपत्तीचं एकदा समान पूनर्वाटप करा. आहे हिंम्मत? 

तुम्हाला अॅट्रोसिटीचाही  भयंकर त्रास होतो म्हणे! मग संपवून टाका ना जातीयता. गावकुसाबाहेरच्यांना गावात घ्या. महारा मांगाला पोरी द्या. भिला, भंग्याच्या पोरी घ्या. पारध्या, कातकर्याला शेजार द्या. कोणाही दलितावर बहिष्कार टाकू नका.जातीवरून हिनवू नका, शिवीगाळ करू नका.  आम्ही स्वत: हून  अॅट्रोसिटी रद्द करण्याची मागणी करू. आम्हाला काय जातीची हौस नाही

Saturday, 24 September 2016

मराठा आरक्षण

मर्सडीज, फोरचूनर,सफारी, स्कार्पियो, xuv झायलो, डस्टर , वेगवेगळ्या कंपन्यांच्या करोडो,लाखो गाड्या ,... आणि अशा लाखो गाड्यांची तोबा गर्दी दिसते..काय तो श्रीमंतीचा थाट तो....नंतर कळलं.... समजलं काय जमाना आला बाबासाहेब यांनी मागासवर्गीय लोकांना दिलेला आरक्षण साठी आत्ता तर मराठा वेटिंग लिस्ट हि सरकारी नोकर्यांसाठी आरक्षण मागायला आली आहे...

यांना आरक्षण पाहिजे रे बाबा.....

Tuesday, 20 September 2016

याद रहेगी कुर्बानी ! Uri attacks


कायरता का तेल चढ़ा है, लाचारी की बाती पर,
दुश्मन नंगा नाच रहे है, भारत की छाती पर,
दिल्ली वाले इन हमलों पर दो आंसू रो देते हैं,
कुत्ते चार मारने में, हम सत्रह शेर खो देते हैं
एटम के बम से डरो नही,सीमा के पार उतरने दो,
यह गैस-तेल,डाटा-वाटा, जन धन,के मुद्दे परे धरो,
अब समय जंग निर्णायक का,
ले शंख युद्ध उदघोष करो,
हम फिर से सत्रह जानें दो,
वो दिन ना हमें दिखाओ जी,
जो होगा देखा जाएगा दुश्मन की जड़ें हिलाओ जी,
जिस दिन आतंक समूचे को,
दोज़ख की सैर करा दोगे,
यूँ समझो उस दिन माताओं की सूनी गोद भरा दोगे,
जब मौत मिलेगी दुश्मन को,
सच में सुभाग मिल जाएगा,
मानो शहीद की बेवा को फिर से
सुहाग मिल जाएगा,
हम हमला करने वालों को नहीं छोडेंगे
यही बात हमने 2008 में भी कही थी। और 2015 में पठानकोट हमले के बाद भी। आज 17 जवानों को खोने के बाद भी हम यही कह रहे हैं। हम नहीं समझ पा रहे कि आखिर यह सिलसिला कब रुकेगा और कितना मजबुत प्रधानमंत्री रोकेगा?
अफसोस की, सिर्फ जनता और सेना मर रही है। हर हमले के बाद आप, एसी रूम में बैठकर सिर्फ मीटिंग करते रहिए ...... 
उच्च स्तरीय मीटिंग. फिर बाहर आकर कहिए हम हमला करने वालों को नहीं छोडेंगे।
पाकिस्तान हमारा दुश्मन राष्ट्र था और हमेशा रहेगा यह सच्चाई है जिसे आप को स्वीकार करना होगा। आप लाहौर में लंच करके आइए या कराची में चाय पीकर, इस सच्चाई से कोई झूठला नहीं सकता। आखिर हम क्यों दोस्ती की तरफ हाथ बढ़ायें। अगर अमेरिका अपने जानी दुश्मन क्युबा से पूरे 90 साल तक दुश्मनी निभा सकता है तो हमें दोस्ती की क्या जरूरत पड़ी है??
सर, कभी सोचा आपने, 2001 में अमेरिका में भी हमला हुआ था और भारत के संसद भवन भी। लेकिन स्थिति किस देश में ज्यादा बदली? हमारे यहां तो इतने हमले हुए कि हम गिन भी नहीं सकते और शोक मनाने के लिए दिवस कम पड़ जाएंगे लेकिन अमेरिका सिर्फ 11 सितंबर को हीं शोक मनाता है।
अब, मृत सैनिकों के नाम और फोटो सार्वजनिक होने के बाद, फुल मलाया चढ़ेगी, देशभक्ति की बात होगी.... फिर हम और आप भी अपने काम में बिजी हो जाएंगे

Monday, 19 September 2016

अॅट्राॅसिटी जनजागरण परिषद, औरंगाबाद

नितीन आगे हत्याकांड 

खैरलांजी हत्याकांड 

सागर शेजवळ हत्याकांड 

स्वप्नील सोनवणे हत्याकांड 


अॅट्राॅसिटी जनजागरण परिषद, २५ सप्टेंबर २०१६ 
वेळ - सकाळी ११ वा 
संत तुकाराम नाट्यगृह , सिडको 
औरंगाबाद

Thursday, 15 September 2016

Dr.Babasaheb Ambedkar Quotes

बाबासाहेब म्हणतात - "शिक्षण हे वाघिणीचे दुध आहे, ते जो प्राशन करील तो गुरगुरल्याशिवाय राहणार नाही"...!


Photo Credits - Amit Vijay Pawar

Tuesday, 13 September 2016

DR.B.R.Ambedkar Painting

   

शाळेच्या‬ बाहेर ‪भिमराव‬ बसायचा‪
‎फळ्यावरचा‬ अभ्यास माञ ‪मनावरती..‬
ठसायचा... ब्राम्हण ‪गुरुजी‬ त्याला पाहुन
‪‎हसायचा‬.. कारण उद्याचा ‪महासुर्य‬
माझ्य‪ भिमरावमध्ये‬
दिसायचा..
# जय भिम #      


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Monday, 12 September 2016

एट्रॉसिटी (atrocity act)





अंदाज़ कुछ अलग है हम जयभिमवालों का.....
आज कुछ लोगो को एट्रॉसिटी बंद करने का शौक चढा है......आैर हमे ऊनका शौक तोडने का…!!
... जयभिम...

Friday, 9 September 2016

The Great Emperor SAMRAT ASHOKA

भारत के इतिहास में यदि महान सम्राट का दर्जा किसी के पास है तो, वो है अशोक महान! अशोक चन्द्रगुप्त के पुत्र बिन्दुसार का पुत्र था!
कभी हार न मानने वाले,हिंसा से न डरने वाले अशोक ने भारत भर में अपनी विजय का परचम लहराया था !
लेकिन अशोक महान ने कलिंग युद्ध में भीषण नरसंहार को देखकर जीवन में कभी हिंसा न करने का निश्चय ले लिया!
उसने 'युद्ध विजय के स्थान पर धम्म विजय' का मार्ग अपना!
उसने घोषणा कर दी कि अब 'भेरिघोष के स्थान पर धर्म-घोष' की गूंज सुनाई देगी!
अशोक ने बुद्ध धर्म का अनुयायी बनकर अपना सम्पूर्ण जीवन जनहित कार्यों में लगा दिया!
इतना ही नही अपने बेटे महेन्द्र और अपनी बेटी संघमित्रा को बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए श्रीलंक,वर्मा आदि देशों में भेज दिया!
अशोक ने बौद्ध स्तूपों का निर्माण कराया!
251 ईसा.पू. पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगति आयोजित की!
उसने अपने शासानदेशों को अनेक स्थानों पर शिलालेखों पर खुदवाया!
उसने बौद्ध तीर्थ स्थलों की भी यात्रा की !
ग्रेट अशोका॥

Wednesday, 7 September 2016

कोण असे दलित? लेखन- हर्षद रुपवते

कोण असे दलित?
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भारताच्या नागभुमीवर धम्मदिक्षा घेऊन जवळपास ६० वर्षे होत आहेत, तेव्हा पासून आपण बौद्ध झालो, मात्र महाराष्ट्रातील पुढाऱ्यांपासून ते सर्वसामान्य माणसांपर्यंत असंख्य जणांनी स्वत:ला दलित म्हणवुन घेण्यातच धन्यता मानलेली आहे. ज्या बाबासाहेबांनी आमच्या माथ्यावर लागलेला अस्पृश्यतेचा कलंक मिटविण्यासाठी जिवाचे रान केले आणि विश्वधम्माचे दान देऊन आम्हाला बुद्धाच्या ओंजळीत टाकले, लाखो बहिष्कृतांना "बौद्ध" म्हणून वैश्विक ओळख दिली. असे असतानाही काही बाजारबुणगे स्वत:ला दलित म्हणून बाबासाहेबांच्या जीवनकार्याची चेष्टाच करीत नाही का? दलित म्हणून कोणता सन्मान, कोणती अस्मिता, कोणती प्रतिष्ठा तुम्ही मिळवित आहात? बौद्ध असणे म्हणजे बुद्धीमान असणे, बुद्धीच्या कसोटीवर खरी ठरणारी गोष्टच स्विकारणे हा बौद्धांचा प्रथम गुणधर्म.
तुम्ही दलित शब्द बुद्धीच्या कसोटीवर ठेऊन कधी पारखला आहे काय? डॉ.आंबेडकरांनी आपल्या ६५ वर्षाच्या हयातीत तुमच्यासाठी कधी दलित शब्द वापरला आहे काय? दलित म्हणजे काय तर भरडलेले, चेपलेले, दबलेले, चुरडलेले, मोडलेले, पिचलेले, कुटलेले, तुकडे केलेले, खाली ठेवलेले, हलकी जात, शोषित, पिडीत इत्यादी अर्थ वेगवेगळ्या व्युत्पत्तीकोषात व शब्दकोषात दिलेले आहेत. अशा अर्थाने दलित म्हणवुन घेण्यात काही नेते मंडळींचा स्वार्थ असू शकतो. मात्र धम्मदिक्षेनंतर बौद्ध किंवा बोधी साहित्य प्रवाह सुरु न करता, काही साहित्यीक महाभागांनी दलित साहित्य उभे करुन आंबेडकरी बोधी विचारच नाकारला आणि बौद्ध आंबेडकरांना 'दलित साहित्याची प्रेरणा' म्हणत दलित आंबेडकर बनवुन टाकले, याकामी केवळ बौद्धच नव्हे तर जातिय आतंकवादाचे पुरस्कर्ते पुरोहीत देखील दोषी आहेत.
ब्राम्हणवादी तुम्हाला दलित म्हणतात, ते तर म्हणणारच त्यात नविन काही नाही, कारण तो त्यांचा 'अजेंडाच' आहे. म्हणून त्यांनी शालेय अभ्यासक्रमातील पाठ्यपुस्तकांमध्ये बाबासाहेबांवर आधारीत धडे घातले, आणि काय वर्णने केलीत, 'दलितांचे कैवारी', 'दलितांचे उद्धारक', 'दलितोंके मसीहा' असे वाचून तुम्हालाही बरे वाटत असेल. शाळेत सर्व जाति धर्मातील विद्यार्थी असतात, लहाणपणापासूनच त्यांच्यावर अगदी पद्धतशीरपणे बिंबविण्यात आले की, डॉ.आंबेडकर केवळ दलितांचेच. डॉ.आंबेडकरांना असे नियोजनबद्ध दलित बनवुन त्यांचे कार्य संकुचित करण्याचा असा प्रयत्न विवीध स्तरांवरुन सातत्याने होत असतो. कारण केवळ आंबेडकरवादच एक असा विचार आहे, जो सर्व बहुजनांनी स्विकारला तर ब्राम्हणवादी विचार उध्वस्त व्हायला फार उशीर लागणार नाही, हे ब्राम्हणवादी व भांडवलवाद्यांना तुमच्याही पेक्षा चांगलेच ठाऊक आहे, त्यांना माहीत आहे की डॉ.आंबेडकरांना मानणाऱ्या समुहात बौद्ध समाज मोठा आहे. जर बाबासाहेबांना दलित केले तर बौद्ध समाजही स्वत:ला दलितच म्हणेल आणि आंबेडकरी चळवळ जी सर्व बहुजनांची आहे तीला दलितांपुरतेच मर्यादित करता येईल. तुमच्या अज्ञानीपणामुळे शत्रुचेच काम सोपे झाले आहे. अगदी नियोजितपणे ते अशा सर्व गोष्टींचे 'दलितीकरण करु पाहत आहे ज्या गोष्टी बौद्धांशी संबंधीत आहेत. आणि त्याला नकळतपणे तुमचे दलित नेते, साहित्यीक, कलाकार, अधिकारी देखील अंजाम देण्यात धन्यता मानतात. स्टेजवर जाऊन हेच लोक दलितांचे नेते, दलितांचे पुढारी म्हणून भाषणे देतात, बाबासाहेब केवळ दलितांचेच नाहीतर सर्वांचे.., दलित चळवळीचे प्रेरणास्थान... अशा टिमक्या वाजवतात. कलावंतही मागे नाहीत, दलितांचा राजा भिमराव माझा... अशी असंख्य फडतुस विचारांची गाणी देखील प्रबोधनाचा आव आणून ओकली जातात. साहित्यीक म्हणवुन घेणाऱ्या काही पोटभरुंनी तर कहरच केलेला आहे. दलित साहित्य, दलित वाड़मय, दलित रंगभुमि, दलित राजकारण, दलित चळवळ असे असंख्य निरोपयोगी व अनैतिक शब्द जन्माला घालून ते इतके गोंजारले की, डॉ.आंबेडकरांच्या समग्र विचार प्रवाहाला 'दलित साहित्याची प्रेरणा' म्हणून कलंकीत करुन टाकले. ते तर बाबासाहेबांच्या शेड्युल कास्ट फेडरेशन, स्टेट अँड मायनॉरीटीज, अनटचेबल्स या शब्दांचे भाषांतरही अनुक्रमे दलित फेडरेशन, राज्य व अल्पसंख्यांक दलित, दलित असे करताना दिसतात. काहींनी तर दलित वाड़मयात डॉक्टरेट मिळविल्यात. डॉ.आंबेडकरांच्या नावाने ब्राम्हणवादी सरकारने सुरु केलेल्या दलित मित्र पुरस्काराचे षडयंत्र हाणून पाडायचे सोडून उलट काही भोंदू साहित्यीक, सामाजिक कार्यकर्ते, पत्रकार या बेगडी सन्मानासाठी इतके हापापलेले दिसले जणू तो भारतरत्न किंवा नोबेल पुरस्कारच आहे. दलित वस्ती सुधार योजना, दलित योजना अशा गैरसंविधानिक नावाने सरकारी योजना राबविल्या जातात त्याला विरोध करुन बौद्ध वस्ती किंवा वसाहत अशा नावाने योजना राबविण्यासाठी तरी नेत्यांनी, अधिकाऱ्यांनी प्रयत्न करावेत. खरे तर सरकार दलित या नावाने योजना, पुरस्कार, अनुदान इत्यादी प्रकार राबवुच कसे शकते हा अतिमहत्वाचा प्रश्न निर्माण होतो. दलित हा शब्दच मुळात गैरसंविधानिक आहे. यापुर्वीही इतर राज्यात लतासिंग विरुद्ध उत्तरप्रदेश सरकार तसेच अरुमुगम सैरवाई विरुद्ध तामिळनाडू सरकार खटल्या मध्ये दलित शब्द असंविधानिक असल्याचे म्हटले आहे. तर सर्वोच्च न्यायालयानेही राष्ट्रपती विरोधातील खटल्या मध्ये शासकीय अभिलेखातून दलित शब्द काढून टाकण्याचे निर्देश दिले होते. दलित शब्द भेदभाव जनक, तुच्छता दर्शक तर आहेच शिवाय संविधानातील १४,१५,१६,१७,१९,२१ व ३४१ आर्टीकलचे उलंघन करणारा आहे. दलित म्हणून भारतीय संविधानात कोणत्याच तरतुदी नसताना केवळ कपटनिती म्हणून सरकारने हा घाट घातलेला दिसत आहे. शिवाय हाच अघोषीत नियम आदिवासींनाही लागू केलाय. खरेतर आज आदिवासी शब्दही सोयीपुरता वापरला जात असला तरी आदिवासी शब्द देखील संविधान सभेतच नाकारला गेला असून, अनुसूचित जमाती या शब्दालाच संविधानिक मान्यता देण्यात आली आहे, असे असतानाही शासन जाणिवपुर्वक आदिवासी विकास मंत्री, आदिवासी योजना, प्रकल्प इत्यादी शब्दउद्योग करुन संविधानाची पायमल्ली करीत आहे. त्यासाठीही तितकाच विरोध व प्रबोधन होणे गरजेचे आहेच. नाहीतर उद्या तुमचे दलित नेते त्या आधारावर दलित विकास मंत्रीपदाची भीक मागायलाही कमी करणार नाहीत.
अडाणी लोकांची अडचण समजु शकते पण शिक्षितांबाबतचे काही किस्से इतके अजब असतात की ऐकुन तळपायाची आग मस्तकात जावी. असाच बौद्धांच्या एका मिटींग मधला किस्सा मांडावा वाटतो की, बौद्धांवरील अत्याचारां विरोधी तालुका स्तरीय संघटन स्थापण करण्याच्या मिटींग मध्ये संघटनेला नाव देण्याविषयी अनेक शिक्षित-उच्चशिक्षित बौद्ध आपापली मते मांडत होती, त्यापैकी काहीनी दलित शब्दाचा आग्रह केल्याने मी आक्षेप घऊन दलित व हरीजन शब्द बाबासाहेबांनी कसा नाकारला व तो आपणही का नाकारावा याविषयी विश्लेषण केले, मात्र एका प्राध्यापकाने त्यावर बोलताना बाबासाहेबांनी केवळ हरीजन शब्दच नाकारला दलित नाही असा असा भंकस युक्तीवाद करुन दलित शब्दाला खुप व्यापक अर्थ असल्याच्या अविर्भावात त्यांनी तो मुद्दा रेटण्याचा प्रयत्न केला. दुसरा किस्सा रिपाई गटाच्या एका तालुका पदाधिकारीचा आहे, तो असा की त्या तालुक्यातील एका गावातील एक गरीब व्यक्ती जुना जातिचा दाखला घेऊन त्या नेत्याकडे यासाठी आला होता की, त्याच्या दाखल्यावरील हिंदू-महार जात काहीतरी करुन दुसऱ्या मार्गाने तहसीलदाराकडून बदलुन हिंदू-हरीजन करायची होती, कारण त्या व्यक्तीला त्याच्या गावातील एकाने असे भरवुन दिले होते की, हिंदू-महार पेक्षा हिंदू-हरीजनांना जास्त सवलती आहेत. यावर त्या नेत्याने त्या व्यक्तीला मार्गदर्शन करायचे सोडून, तुमचे काम आपण हमखास करुन देऊ असे म्हणून त्याकडून काही अॅडव्हांस रक्कमही उकळली.... म्हणजेच सवलती या अनुसूचित जाति-जमाती अशा प्रवर्गानुसारच निहीत केलेल्या असतात, एकल जाति स्वरुपात नाही याचे भानही त्यांना नाही, त्यामुळे लोकांच्या अज्ञानाचा गैरफायदा घेत गरीबांची भाड खाणाऱ्या अशा नेत्यांना काय म्हणावे हे सुज्ञ वाचकांनीच ठरवावे.
पहिल्या किस्स्यातील प्राध्यापकाला मग पुढे सर्वांसमक्ष चांगलेच झापले की, इतकाच तुम्हाला दलित शब्दाचा पुळका असेल तर खुशाल स्वत:ला दलित म्हणवुन मिरवावे, स्वत:चे आडनाव, धर्म याजागीही तो शब्द स्विकारावा, घरावरही दलितगृह लिहावे... परंतू आम्हा बौद्ध समाजास दलित म्हणण्याचा तुमच्या सारख्या फाटक्या विचारांच्या लोकांना काय अधिकार, तुम्ही कोण आम्हाला दलित म्हणणारे..? इतकाच व्यापक आणि महत्वाचा शब्द आहे तर बाबासाहेबांनी अनुसूचित दलित असा उल्लेख का केला नाही याचा तरी कधी विचार करावा. काय तर म्हणे दलित हा शब्द शोषित, पिडीत, अन्यायग्रस्त, भटके, आदिवासी अशा सर्व समुहांकरीता सर्वसमावेशक व्यापक अर्थाने येतो म्हणून त्यास अर्थ आहे. खरेच असे असेल तर, जरा कधी आजूबाजूचा आढावा घेऊन पहावे की तुमच्या दलित व्याख्येत कोण कोण बसते आहे. जीला तुम्ही दलित वस्ती म्हणता खरोखर तिथे राहणारे सर्वच लोक शोषित, पिडीत, दारीद्रीच आहेत काय? त्यापैकी अनेकजण नोकरी व्यवसाय करणारे, गाडी बंगले, निटनेटकी घरे असणारी मंडळी तुमच्या व्याख्येनुसार दलित म्हणावी काय? एकाच परीवारातील काही कुटुंबे गरीब, दारीद्री तर काही कुटुंबे, नातेवाईक मध्यम व उच्चवर्गीय प्रकारातली असतात, अशा परीवारांना तुम्ही दलित समजता काय? शहरांमधील काही ठिकाणी अनेक दारीद्री, पिडीत समुहाच्या गलिच्छ वस्त्या, झोपडपट्ट्या वसलेल्या आहेत... मग तुमच्या व्याख्येनुसार त्या सर्वांनाच दलित समजले जाते काय? त्यांच्या वस्त्यांना दलित वस्ती म्हणण्यात येते काय? गावाकडे आदिवासी भागातील आदिवासींच्या वस्त्यांना, गावांना, भटक्या जमातींच्या वस्त्यांना, वाड्यांना दलित वस्ती, दलित गावे, दलित वाड्या असे काही संबोधने आहेत काय? त्यांच्यासाठी असणाऱ्या सरकारी योजनांना दलित वस्ती सुधार योजना सारखी नावे असतात काय? शिवाय ते तुमच्या प्रमाणे अभिमानाने स्वत:ला दलित म्हणवुन घेतात काय? इतकेच काय अनुसूचित जाति प्रवर्गातीलच असणारे चांभार, मांग, ढोर, खाटीक इत्यादी जाति समुह तरी स्वत:ला दलित म्हणवुन घेतात काय? गावांमध्ये बौद्धांची इतरांशी भांडणे, वाद झाल्यावर त्याचे वर्णन तेथील स्वयंघोषीत पत्रकार 'दलित सवर्ण वाद' असा करतात. कोण दलित व कोण सवर्ण काय संबंध? जातियवादातून हिंसाचार होतो, बौद्धांवर अत्याचार होतो त्या विरोधात आंदोलन, मोर्चे, निषेध सभा होतात, रान पेटते आणि एका सुरात दलित अत्याचार, दलित हत्याकांड या नावाने सर्वत्र ओरड होते. बौद्ध वगळता इतर समुहांवर अत्याचार झाल्यावर असे वातावरण राज्यभर पेटलेले तुम्ही कधी पाहता काय? याचे उत्तर नाही असेल तर दलित म्हणून शिल्लक राहीला तो केवळ बौद्ध समाजच नव्हे काय? ही आंदोलने देखील प्रामुख्याने बौद्धांचीच असतात म्हणूनच बौद्ध नावाने ती केलीत तर त्याची व्याप्ती बाहेरच्या देशापर्यंत पोहचु शकते, कारण अनेक देश बौद्ध धर्मिय आहेत, बौद्धांवरील अन्याय म्हणून ते नक्कीच हा मुद्दा त्यांच्या देशातही उचलुन धरतील व इथल्या सरकारी यंत्रणेचा धिक्कार करु शकतील, मात्र दलित कोण हे त्यांना कुठे ठाऊक असते? हा इथलाच खुजेपणा इथेच चेपला जातो.
मधल्या काळात दलित पँथर आली. अमेरिकेतील काळ्या निग्रो लोकांवरील अन्याय विरोधी संघटना ब्लॅक पँथर या नावाची नक्कल म्हणजे दलित पँथर. खरेतर काळ्या लोकांनी त्यांच्या संघटनेला दिलेले नाव त्यांच्या चळवळीशी अगदी समर्पकच होते. पँथर या वाघाचा रंग काळा असतो व काळा रंग म्हणून निग्रोंचा द्वेष केला जात असे म्हणून ब्लॅक पँथर. मात्र महाराष्ट्रातील लोकांनी आपल्या संघटनेला दलित पँथर नाव देऊन बौद्धांचा दलित म्हणून आणखी प्रसार केला, परंतू पँथरची ही आंदोलने बाबासाहेबांनी स्थापण केलेल्या 'समता सैनिक दल' या संघटनेत सामील होऊन केली असती तर ते बौद्ध या नावाला व आंबेडकरी चळवळीला अगदी व्यापक व उचितच ठरले असते; कारण शब्दात फार मोठी ताकत असते, व्यापकता असते हे सर्वांनाच समजते असे नाही. काही लोक तर अगदी उथळपणे आणि उडाणपणे काही शब्द वापरुन चांगल्या शब्दांचाही खेळ करुन टाकताना दिसून येतात. त्यापैकीच काही मुंबई भागातील माथेफिरु बौद्धांचे उदाहरण देता येईल. त्यांना विचारल्यावर ते सांगतात 'आम्ही जयभिम' आहोत किंवा 'जयभिमवाले' किंवा 'जयभिमचे लोक' आहोत... हा काय प्रकार आहे? जयभिम हे काय समुहाचे नाव आहे की धर्माचे की जातिचे..? अगदी एखाद्या फेरीवाले, भंगारवाले प्रमाणे कुणीही काहीही चावळायचे. उद्या शाळेच्या दाखल्यावरही ते जात म्हणून 'हिंदू-जयभिम' लिहीण्या इतके बेभान न झाले म्हणजे बरे.
खरेतर व्यवहारात आपली संविधानिक प्रवर्गीय ओळख अनुसूचित जाति अशी असून राष्ट्रीय ओळख भारतीय आहे, तर धार्मिक, सांस्कृतीक ओळख ही बौद्ध. असे असताना या गोष्टींना हे भामटे सरळ सरळ बगल देऊन अप्रत्यक्षपणे धम्मदिक्षा आणि संविधानच नाकारण्याचा करंटेपणा करताना दिसतात. डॉ.आंबेडकरांनी कधीही आपल्या आंदोलनात कुचकामी व अव्यवहारीक संबोधने वापरली नाहीत. हरीजन हे नाव प्रथम गांधीच्या भ्रष्ट मेंदुमधून अस्पृश्यांसाठी वापरात आले होते. गांधीनी हरीजन सेवक संघ काढून हरीजन नावाचे वर्तमानपत्रही चालविले. गांधी हे गुजराती होते व गुजरात मध्ये गुजराती भाषेत देवदासींच्या नाजायज मुलांना हरीजन म्हटले जात होते. बाबासाहेबांनी त्याविरोधात विधायक संघर्ष करुन कायदेशीर रित्या ते नाव कायमचे रद्दीत काढले. सन १९२४ मध्ये बहिष्कृत हितकारणी सभा ही संघटना निर्माण केल्यानंतर पुढे बाबासाहेबांनी 'डिप्रेस्ट क्लास' अशी परीभाषित संज्ञा ब्रिटीश गोलमेज परीषद काळातील घडामोडी लक्षात घेऊन अस्पृश्यांना स्वतंत्र हक्क अधिकार प्राप्त करुन देता यावेत म्हणून वापरली, व त्यामुळे अस्पृश्यांना अल्पसंख्यांक मानण्यात आले. डिप्रेस्ट क्लास या नावाशी सुद्धा बाबासाहेब फारसे समाधानी नव्हते म्हणून त्याचे नामांतर करण्यासाठी त्यांनी गोलमेज परीषदेत लिखित मेमोरँडम मांडले, त्याचा परीणाम म्हणून ब्रिटीश इंडिया अॅक्ट १९३५ मध्ये 'शेड्युल्ड कास्ट' असे नामकरण केले. कारण त्यावेळी शेड्युल्ड बनविण्याची जबाबदारी डॉ.आंबेडकरांवर सोपविण्यात आली होती. मात्र दलित शब्द तोपर्यंत फारसा रुढ झालेला नसावा अन्यथा तोही बाबासाहेबांनी हद्दपार केलाच असता. पुढे हरीजन शब्द रद्दीत गेल्यानंतर काँग्रेस व गांधीच्या प्रेरणेने बाबू जगजीवन राम या चांभार जातितील नेत्याने 'दलित वर्ग संघ' काढून अस्पृश्यांसाठी सर्व प्रथम 'दलित' हा शब्द प्रचलित केला, मात्र बाबासाहेबांनतर काही खुळचट साहित्यीकांनी बहिष्कृत हितकारणी सभा याचे इंग्रजी भाषांतर डिप्रेस्ट क्लास सोसायटी असे केले, तर डिप्रेस्ट क्लासचे मराठी भाषांतर 'दलित वर्ग' असे केले जे पुर्णत: चुकीचे होते. खरेतर डिप्रेस्टचा अर्थ उदासीन, दबलेला असा असल्याने स्वत:ला हीन समजणे ही अभिमानास्पद बाब नव्हे. दलित हा शब्द पुर्वाश्रमींच्या अस्पृश्यांकरीता काही ठिकाणी प्रचलित असला तरीही तो आज महाराष्ट्रात तरी जाणिवपुर्वक फक्त बौद्धांपुरताच व केवळ मुख्य प्रवाहापासून त्यांना वेगळे ठेवण्याच्या हेतूने वापरण्यात येतो, हे वास्तविक सत्य आहे, त्यामागे दोन कारणे आहेत, एक म्हणजे बौद्धांची ओळख तुच्छता दर्शक बनविणे, आणि दुसरे महत्वाचे म्हणजे जातिय राजकारण. तुम्हाला दलित केवळ राजकीय संकल्पनेतूनच म्हटले जाते, याचे अनेक पैलू आहेत. राजकारणात दलित म्हणजे एक अल्पसंख्यांक संकल्पना असून, ती तुम्हाला कधीही शासनकर्ती बनु देणार नाही. परंतू बाबासाहेबांनी तर सत्ताधारी जमात होण्यासाठी भिंतीवर लिहून ठेवण्याचा संदेश दिला आहे, मग हे गणित कसे जुळणार? गणित जमु शकते मात्र दलित बनण्याची वजाबाकी करुन तुम्ही सुत्रच चुकविले आहे. कारण दलित संकल्पना तुम्हाला इतर समुहांपासून अलगद बाजूला फेकून देते आणि तुम्ही म्हणता दलितांची इतकी मते नाहीत की सत्ता येऊ शकेल. मग अन्य पक्षांना पाठिंबा द्यायचा आणि कटोऱ्यात काहीतरी पडेल ते चाचपडायचे. अशा विचित्र प्रकारचे राजकारण चोथा होई पर्यंत चिवडत बसणे चालू आहे. तर दुसरीकडे प्रसार माध्यम यंत्रणा दलित पक्ष, दलित चळवळ, दलित राजकारण अशा शब्दावल्यांची भारुडे गातात आणि आंबेडकरी विचारांची धार दलित नावाच्या दगडाने ठेचून पार बोथट करतात. यामागे फुले-शाहु-आंबेडकरी चळवळ कशी खुंटवली जाईल यासाठी सारे वांझोटे षडयंत्र व कुटनिती ब्राम्हणवादी राबवित असतात. म्हणूनच तीन टक्के अल्पमतवाले हिंदू नावाखाली बहुमतवाले बनतात, मात्र पंच्यांशी टक्केवाले अनुसूचित जाति-जमाती, ओबीसी बहुजन हे वेगवेगळ्या संकुचित शब्दभेद प्रयोगामुळे आणखीच अल्पमतवाले बनतात. आणि लोकशाहीचा नियम आहे की अल्पमतवाले कधीही सत्ताधारी बनु शकत नाही. राजकीय दृष्ट्या सर्वसमावेशक, सर्वव्यापी संज्ञा किंवा संबोधन शोधले तरच बहुजनांना संघटीत करु शकाल, त्याशिवाय शासनकर्ते होण्याचे स्वप्न देखील दलित म्हणून गौरव वाटणाऱ्या नादखुळ्यांनी पाहू नये. खरेतर जागरुकता इतकी हवी की आमची अशी कुचकामी, वेगळे पाडणारी ओळख निर्माण करणाऱ्यांना तुमची भीती वाटावी. म्हणून बाबासाहेबांच्या खऱ्या अनुयायींवर ही जबाबदारी आहे की शासन, राजकारण, समाजकारण, साहित्य अशा विभिन्न पातळ्यांवर पसरलेले हे 'दलित' शब्दाचे जळमट झटकून टाकावे आणि सनदशीर व विधायक संघर्ष करुन दलित शब्द जोर लावुन नामशेष करुन टाकावा. कारण त्या शब्दात बहुजन समावेशक एकजिनसीपणाच नाही. अन्य समुदाय स्वत:ला दलित मानत नाहीत. दलित म्हणून फक्त बौद्ध समाजच बाकी राहतो हे व्यवहारिक सत्य आहे. भारतभुमीचे मूळ रहीवासी असलेल्या नाग लोकांनी सर्वव्यापी बौद्धसाम्राज्य निर्माण करुन धम्मशासन केल्याचा वैभवशाली व गौरवशाली इतिहास तुमच्या मागे आहे, म्हणूनच भारतातील मुळ रहीवासी असणाऱ्या सर्व नाग भुमीपुत्र नवबौद्धांनी सामाजिक राजकीय दृष्ट्या सर्व समावेशक अशी आपल्या मुळ भुमीशी, मातीशी अस्मिता जपणारी एखादी स्वाभीमानी व व्यापक ओळख किंवा संबोधन तर स्विकारावेच, शिवाय धार्मिक स्तरावर बौद्ध ही सांस्कृतिक वैश्विक ओळख अंगीकारुन गौरवाने, अभिमानाने, स्वाभीमानाने स्वत:ला बौद्ध म्हणावे व बौद्ध म्हणून जगावे, तरच प्रगती होईल, आणि बाबासाहेबांच्या 'बौद्धमय भारत' व 'सत्ताधारी जमात' या संकल्पनांना तुम्हाला खराखुरा न्याय देता येईल.
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©लेखन- हर्षद रुपवते
(अहमदनगर. 8055404020)
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