Tuesday, 20 September 2016

याद रहेगी कुर्बानी ! Uri attacks


कायरता का तेल चढ़ा है, लाचारी की बाती पर,
दुश्मन नंगा नाच रहे है, भारत की छाती पर,
दिल्ली वाले इन हमलों पर दो आंसू रो देते हैं,
कुत्ते चार मारने में, हम सत्रह शेर खो देते हैं
एटम के बम से डरो नही,सीमा के पार उतरने दो,
यह गैस-तेल,डाटा-वाटा, जन धन,के मुद्दे परे धरो,
अब समय जंग निर्णायक का,
ले शंख युद्ध उदघोष करो,
हम फिर से सत्रह जानें दो,
वो दिन ना हमें दिखाओ जी,
जो होगा देखा जाएगा दुश्मन की जड़ें हिलाओ जी,
जिस दिन आतंक समूचे को,
दोज़ख की सैर करा दोगे,
यूँ समझो उस दिन माताओं की सूनी गोद भरा दोगे,
जब मौत मिलेगी दुश्मन को,
सच में सुभाग मिल जाएगा,
मानो शहीद की बेवा को फिर से
सुहाग मिल जाएगा,
हम हमला करने वालों को नहीं छोडेंगे
यही बात हमने 2008 में भी कही थी। और 2015 में पठानकोट हमले के बाद भी। आज 17 जवानों को खोने के बाद भी हम यही कह रहे हैं। हम नहीं समझ पा रहे कि आखिर यह सिलसिला कब रुकेगा और कितना मजबुत प्रधानमंत्री रोकेगा?
अफसोस की, सिर्फ जनता और सेना मर रही है। हर हमले के बाद आप, एसी रूम में बैठकर सिर्फ मीटिंग करते रहिए ...... 
उच्च स्तरीय मीटिंग. फिर बाहर आकर कहिए हम हमला करने वालों को नहीं छोडेंगे।
पाकिस्तान हमारा दुश्मन राष्ट्र था और हमेशा रहेगा यह सच्चाई है जिसे आप को स्वीकार करना होगा। आप लाहौर में लंच करके आइए या कराची में चाय पीकर, इस सच्चाई से कोई झूठला नहीं सकता। आखिर हम क्यों दोस्ती की तरफ हाथ बढ़ायें। अगर अमेरिका अपने जानी दुश्मन क्युबा से पूरे 90 साल तक दुश्मनी निभा सकता है तो हमें दोस्ती की क्या जरूरत पड़ी है??
सर, कभी सोचा आपने, 2001 में अमेरिका में भी हमला हुआ था और भारत के संसद भवन भी। लेकिन स्थिति किस देश में ज्यादा बदली? हमारे यहां तो इतने हमले हुए कि हम गिन भी नहीं सकते और शोक मनाने के लिए दिवस कम पड़ जाएंगे लेकिन अमेरिका सिर्फ 11 सितंबर को हीं शोक मनाता है।
अब, मृत सैनिकों के नाम और फोटो सार्वजनिक होने के बाद, फुल मलाया चढ़ेगी, देशभक्ति की बात होगी.... फिर हम और आप भी अपने काम में बिजी हो जाएंगे

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